वास्तु-शास्त्र न तो 'तुक्केबाज़ी' है और न ही 'टोटकेबाज़ी'। यह तो इस भौतिक जगत को संचालित करने वाले नियमों की जानकारी देकर अपने परिवेश को, अपने आसपास के वातावरण को; विशेषकर अपने निवास एवं कार्यस्थल को उन शक्तियों/ऊर्जाओं को अधिकाधिक अनुकूल बनाने का विज्ञान है, जो हमारे सुख, स्वास्थ्य एवं सौभाग्य में अभिवृद्धि करने की क्षमता रखता है। यह पुस्तक इन्हीं ब्रह्मांडकीय सिद्धांतों की जानकारी एकदम सरल एवं व्यावहारिक रूप में आपके सामने रखती है। यदि आप घर अथवा कार्यस्थल का निर्माण करने या खरीदने जा रहे हैं, तो यह पुस्तक आपको बताएगी कि आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। और यदि आप घर अथवा कार्यस्थल बना या खरीद चुके हैं, तो इसकी मदद से यह जान सकते हैं कि वह वास्तु के सिद्धांतों के कितना अनुकूल या प्रतिकूल है। यदि कहीं कोई प्रतिकूलता है, तो उसे दूर करने हेतु सरल एवं 'व्यावहारिक' उपाय भी पुस्तक में सुझाए गए हैं, जिन्हें कोई भी आसानी से समझकर अमल में ला सकता है। भूखंड के चयन तथा नींव डालने के तरीके से लेकर घर/कार्यालय/व्यापारिक प्रतिष्ठान के कोने-कोने की व्यवस्था तथा यहाँ तक कि भीतर एवं बाहर लगाए जाने वाले पेड़-पौधों तक के बारे में सविस्तार बताया गया है। वास्तु-दोषों के निवारण में पशु-पक्षियों, रंगों, यंत्रों एवं पिरामिडों की भूमिका के बारे में आपको कई प्रैक्टिकल बातें पढऩे को मिलेंगी। चीनी वास्तु-शास्त्र फें गशुई के ऊपर भी अलग से एक अध्याय दिया गया है। कुल मिलाकर, पुस्तक में कही गई बातें 'हाथ कंगन को आरसी क्या' जैसी हैं- पढि़ए, अमल में लाइए, और स्वयं ही उनकी प्रभावोत्पादकता को महसूस कर लीजिए।