''यह किताब ऐसे ढेरों तरीके बताती है, जिनकी मदद से हम खुद को आज़ाद करा सकते हैं... उस बोझ से, जिसे बॉडलेअर ने 'समय का बोझ' कहा है। यह हमें उस भ्रम से मुक्ति दिलाती है, जिसमें पड़कर हम यह मानने लगे हैं कि इस बोझ से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं है और हम इसे ढोए जाने के लिए अभिशप्त हैं।"
-वॉशिंगटन पोस्ट
''लेखक ने हमें वैश्विक स्तर पर हो रहे उन प्रयासों के बारे में बताया है, जो आम आदमी के अवचेतन में बैठा दिए गए इस भ्रम को झुठलाने में लगे हैं कि आज के समय में रफ्तार ही कामयाबी का एकमात्र उपाय है। बहुत ही रोचक और प्रभावोत्पादक।"
-क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर, जिसने 'इन प्रेज़ ऑफ स्लोनेस' को नॉन-फिक्शन कैटेगरी में वर्ष 2004 की सर्वश्रेष्ठ किताब घोषित किया था।
''आँखें खोल देने वाली किताब है 'इन प्रेज़ ऑफ स्लोनेस'।"
-बिज़नेस वल्र्ड
''आधी रिपोतार्ज और आधी मैनिफै स्टो की शक्ल में लिखी गई यह दिलचस्प किताब हमें उन ढेरोंढेर तरीकों से परिचित कराती है, जो दुनियाभर के व्यस्ततम और आधुनिक लोगों द्वारा अपने जीवन में आराम और इत्मीनान को बढ़ावा देने और बेवजह की जल्दी तथा हड़बड़ी के दुष्प्रभावों से पार पाने हेतु अपनाए जा रहे हैं।"
-मिनेपोलिस स्टार ट्रिब्यून
''महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय काम... जो हमें इस बात के प्रति सजग करता है कि 'जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादाÓ की दीवानगी हमें किस खतरनाक मोड़ पर ले आई है... और इस बात के प्रति भी कि हम विकल्पहीन नहीं हैं।"
-योग जर्नल