साई की जीवन का एक दिलचस्प अध्याय भी है। चमत्कारी किस्से-कहानियों से अलग। कम लोगों का ध्यान इस तरफ गया। श्रद्धा के सैलाब में छिपा एक बेशकीमती प्रयोग। बड़े से बड़ा सुधारवादी भी आज जिसकी कल्पना नहीं कर सकता। 1911। निर्वाण के सात साल पहले। बाबा ने रामनवमी का जबरदस्त जलसा शुरू कराया। मस्जिद में। इसमें गोकुल उत्सव और उर्स-मोहर्रम भी जोफ दिया। इनमें बाबा के मुस्लिम मुरीद दुसरे बक्तों के माथे पर चंदन का टीका लगते। हिन्दू अनुयायी उर्स में पानी पिलाते। कौमी एकता का नारा नहीं लगाया। दो धर्मों को भिड़ने की बजाये मिलने का मार्ग बता दिया।